खजूर (Phoenix dactylifera L) सबसे प्राचीन प्लांटेशन फ़सलों में से एक है, जो अपने मीठे और पौष्टिक फलों के लिए जाना जाता है। यह फ़सल उच्च तापमान और सूखे के दबाव के प्रति सहनशील होता है। यह मध्य पूर्व के अरब रेगिस्तान और उत्तरी अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में आर्थिक महत्व के बारहमासी पौधों में से एक है। भारत में खजूर की खेती राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल तथा मध्य प्रदेश में की जाती है। कई क्षेत्रों के लिए अनुकूल होने की वजह से इसकी खेती अब भारत में लोकप्रिय हो रही है।
खजूर की उत्पत्ति फ़ारस की खाड़ी और एशियाई क्षेत्र में हुई थी और 5,000 वर्ष से भी पहले इन्हें उगाया जाने लगा था। आज उगाए जाने वाले खजूर के पेड़ कई वर्षों से पौधों के सफल चयन और उनकी खेती का कारण हैं।
इसके पौधे सीमित संख्या में शाखाएं देती हैं, पारंपरिक तौर से जिनका इस्तेमाल इसके प्रसार के लिए किया जाता है। बीज से अंकुरित पौधे अच्छे नहीं होते हैं, क्योंकि उनमें लिंग और विविधता की उच्च परिवर्तनशीलता दिखाई देती है। इसलिए, पूरे वर्ष आवश्यक किस्मों और मात्राओं के सही प्रकार, लिंग विशिष्ट, रोग-मुक्त पौधों का ध्यान रखने के लिए खजूर का कृत्रिम (इन विट्रो) प्रसार सबसे अच्छा विकल्प और प्रभावी तरीका माना जाता है।
विश्व में खजूर के फलों का उत्पादन काफी बढ़ गया है और आने वाले सालों में इसके और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है। खजूर उत्पादों की खपत और मांग हर वर्ष बढ़ रही है और इस मांग को पूरा करने के लिए खजूर का उत्पादन भी बढ़ गया है। खजूर के पौधे औसतन पांच साल की आयु में फल देना शुरू कर देते हैं, और 60 साल तक औसतन 150 – 200 किलोग्राम/पेड़/वर्ष की ताजा फल उपज के साथ ये अपना उत्पादन देते रहते हैं। इसमें खजूर के फल लगते हैं, जो खाने योग्य होते हैं (और उनमें एक बीज के साथ गूदेदार पेरिकार्प होता है)। खजूर के फलों से तमाम किस्म के उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जैसे ताजा और गुठली रहित खजूर, खजूर पाउडर, (खजूर क्रश), खजूर का शरबत, खजूर का रस, खजूर की मिठाई, खजूर जैम और खजूर का अचार।